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गुरुवार, 7 जून 2012

स्वास्थ्य का सब्जबाग और जमीनी हकीकत

वादों के वीर मध्यप्रदेष के मुख्यमंत्री षिवराज सिंह चैहान ने अपनी फेहरिस्त में एक नया वादा जोड़ लिया है। प्रदेष के 54 हजार गांवों में स्वास्थ्य सुविधायें पहॅुंचाने का वादा। मुख्यमंत्री षिवराज सिंह चैहान ने प्रदेष की जनता को सब्जबाग तो बहुत सुंदर दिखाया है। ’’सब्जबाग संपूर्ण स्वास्थ्य सबके लिये ’’का । मुख्यमंत्री ने हाल ही में इस योजना का शुभारंभ किया। प्रदेष सरकार की ये योजना शहरी एवं ग्रामीण क्षेत्रों के गरीब परिवारों को बेहतर स्वास्थ्य देने के लिये बनाई गई । इस योजना के तहत सरकार हर गांव में ग्राम स्वास्थ्य एवं स्वच्छता समिति के माध्यम से आरोग्य केंद्र की स्थापना करेगी तथा प्रदेष भर में 6 लाख स्वास्थ्य कर्मियों को प्रषिक्षित कर इसमें सहभागी बनाया जायेगा। प्रदेष सरकार की इस योजना पर नजर डालते ही अनायास ही अल्मा आटा की याद आ जाती हैं। 1978 में तत्कालीन सोवियत संघ के शहर अल्मा आटा में संयुक्त राष्ट्र संघ के अनुषांगिक संगठन विष्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा आयोजित काफ्रेंस में पहली बार ’’सबके लिये स्वास्थ्य’’ के प्रति प्रतिबद्वता दिखाई गई थी। अल्मा आटा इस मायने में महत्वपूर्ण है कि पहली बार दुनिया की सारी सरकारें लोकतांत्रिक, तानाषाही, साम्यवादी या पूंजीवादी सभी ने प्राथमिक स्वास्थ्य सेवा के सिद्वांतों को स्वीकारते हुये 2000 तक अपने-अपने देष के हर आम और खास आदमी को स्वास्थ्य सेवा देने का संकल्प लिया था। अल्मा आटा में ही यह माना गया था कि ’’स्वास्थ्य का मतलब केवल रोगों की अनुपस्थिति मात्र नहीं हैं वरन भौतिक, मानसिक एवं सामाजिक रूप से पूर्ण कुषलता स्वास्थ्य हैं।’’ विकासषील और 50 प्रतिषत गरीबों वाले हमारे देष में स्वास्थ्य का मतलब बीमारी और दवा तक ही सीमित हैं। 22 साल में पूरे किये जाने वाले वादे में सभी देषों की सरकारों ने स्वास्थ्य के 8 बिंदु भी तय किये थे। ये थे-पोषण, सुरक्षित पेयजल एवं स्वच्छता, स्वास्थ्य षिक्षा, मातृ एवं षिषु स्वास्थ्य देखभाल, लिंगभेद समाप्ति, टीकाकरण, स्थानीय बीमारियों की रोकथाम तथा बीमारी एवं चोट का उपचार। अल्मा आटा को 34 वर्ष बीत गये। इन 34 वर्षो में हमारे देष में कई सरकारें आयी, आधा दर्जन से ज्यादा प्रधानमंत्री भी बदले। देष का लगभग हर छोटा बड़ा दल प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष तौर पर सत्ता का भागीदार भी रह चुका। परंतु अफसोस हर किसी ने अल्मा आटे के वादे को भुलाया, और भुलाया आम आदमी की प्राथमिक स्वास्थ्य सेवा की जरूरतों को।
बदतर है हालात
7 प्रतिषत से ज्यादा विकासदर का दावा और अगली पंचवर्षीय योजना में 10 प्रतिषत विकास दर की बात करते योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह और देष के अर्थषास्त्री प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह विकास दर की चिंता तो कर रहे हैं पर देष में 18 वर्ष से कम उम्र की 90 प्रतिषत बालिकाओं में खून की कमी, 48 प्रतिषत बच्चों में कुपोषण के साथ लगभग 50 प्रतिषत परिवारों के गरीबी रेखा के नीचे होने पर ’’राष्ट्रीय शर्म’’ जैसा एक जुमला बोलकर चुप्पी साध जाते हैं। इन विकास पुरूषों को विकास की चिंता तो है पर आम आदमी की मूलभूत जरूरतों से ये अन्जान नजर आते हैंे। मोंटेक और मनमोहन की जुगलबंदी देष में हर आदमी को स्वास्थ्य देने की बजाय निजीकरण को बढ़ावा देने में लगी हुयी हैं। देष की सारी जनसंख्या तक स्वास्थ्य सुविधा पहुॅंचाने के लिये केवल 36 हजार करोड़ रूपये प्रतिवर्ष की दरकार है। जबकि सरकार बड़े औद्योगिक घरानों को लगभग 4 लाख करोड़ रूपये की टैक्स छूट प्रतिवर्ष दे रही है। आज भी देष की कुल जीडीपी का केवल 0.9 प्रतिषत ही स्वास्थ्य पर खर्च हो रहा है। जबकि यह कम से कम जीडीपी का 3 प्रतिषत होना चाहिये। निजीकरण की हिमायती यह सरकार स्वास्थ्य सेवा के नाम पर राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना का नया छलावा रच रही है। इस योजना के अंतर्गत हर आदमी को एक स्मार्ट कार्ड के जरिये किसी भी निजी अस्पताल में एक निष्चित राषि तक का इलाज मुफ््त कराने की सुविधा प्राप्त होगी। उपरी तौर पर तो यह योजना मनमोहक नजर आती है परंतु इसकी आड़ में निजीकरण को बढ़ावा देकर शासकीय स्वास्थ्य सेवाओं की कमरतोड़ देने का षंडयंत्र रचा जा रहा हैं। राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना में 80 प्रतिषत राषि केन्द्र और 20 प्रतिषत राषि राज्य सरकार लगायेगी। इस योजना की बजाय सरकार को सार्वभौमिक स्वास्थ्य पहुॅंच (यूनिवर्सल हेल्थ कवरेज) पर ध्यान केंिद्रत करना चाहिये जो आम आदमी के हित में तो होगी ही, स्वास्थ्य के प्रति सरकार की जिम्मेदारी का आधार भी बनेगी।
प्रदेश के हाल-बेहाल
कुपोषण के लिये कुख्यात प्रदेष के हाल स्वास्थ्य सेवाओं की पहॅुंच के मामले में बेहाल हैं। प्रदेष के ग्रामीण इलाकों में बीमार होने पर इलाज की बजाय मौत ही नसीब होती हैं। हालात ये है कि षिषु मृत्यु के मामले में मध्यप्रदेष देष में पहले नम्बर पर हैं तो मातृ मृत्यु के मामले में चैथे नम्बर पर प्रदेष का नाम आता हैं।
वर्ष 2005-2006 से सितम्बर 2011 तक प्रदेष में 6881 मातृत्व मृत्यु एवं 211220 एक साल से कम उम्र के षिषुओं की मृत्यु मामलें सरकारी आंकड़ों में दर्ज किये गये हैं वह भी उन हालात में जब षिषु एवं मातृत्व मृत्यु के 65 प्रतिषत मामले सरकारी रिकार्ड में दर्ज ही नहीं हो पा रहे हैं। राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिषन के अनुसार प्रदेष के 27 प्रतिषत बच्चे बुखार से मरते हैं तो 45 फीसदी निमोनिया और 8 प्रतिषत डायरिया की वजह से दम तोड़ देते हैं। यह आंकड़े तब हैं जब प्रदेष में मरने वाले कुल बच्चों में से केवल 40 प्रतिशत की ही मौतों की जानकारी ही मिल पाती हैं। अस्पतालों में डाॅक्टरों की उपलब्धता का आलम यह है कि प्रदेष के 15 जिलों में किसी भी सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र में स्त्री रोग, षिषु रोग और निष्चेतना विषेषज्ञ का एक भी पद भरा नहीं है। प्रदेष भर में जहां स्त्री रोग विषेषज्ञ के 53.6 प्रतिषत पद रिक्त हैं वहीं बालरोग विषेषज्ञ के 43.7 प्रतिषत और निष्चेतना विषेषज्ञ के 48 प्रतिषत पद रिक्त है। ग्रामीण क्षेत्रों के हाल तो ये है कि रीवा, सागर शहडोल और नर्मदापुरम संभाग में निष्चेतना विषेषज्ञ के 100 प्रतिषत पद रिक्त हैं। स्त्री रोग विषेषज्ञों में रीवा संभाग में 90.6, शहडोल संभाग में 96, नर्मदापुरम में 100 और उज्जैन संभाग में 90 प्रतिषत पद रिक्त हैं। इन शर्मनाक स्थितियों के बीच प्रदेष की सरकार स्वास्थ्य के नाम पर बीमा योजना के जरिये आम आदमी को छलने के सिवा और कुछ भी नहीं दे रही हैं। हालात ये है कि प्रदेष में डाॅक्टरों विषेषज्ञों और स्वास्थ्यकर्मियों की नियुक्ति प्रषिक्षण और इलाज के लिये बुनियादी ढाॅंचे की कोई साफ घोषित नीति नहीं हैं। राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिषन ने दूर दराज के गांव में सेवा देने वाले डाॅक्टरों को विषेष भत्ते का प्रावधान किया हैं। लेकिन पिछले तीन साल से इसकी मंजूरी अटकी पड़ी हैं। सरकार की चिकित्सा षिक्षा नीति से सरकार का नियंत्रण खत्म हो गया हैं और सरकार ने ही उसे खुले बाजार के हवाले कर दिया हैं।
नीतियों को नियंत्रित करें सरकार
प्रदेष के मुख्यमंत्री और उनकी सरकार अगर सचमुच प्रदेष की आम जनता को स्वास्थ्य सुविधायें मुहैया करवाने की इच्छा रखती है तो सरकार को अपनी स्वास्थ्य संबंधी नीतियों पर पुर्नविचार करना चाहिये। सरकार को चाहिये कि वह सबसे पहले तो चिकित्सा षिक्षा को सरकार की नीतियों के जरिये संचालित करें और निजी हाथों में जाने से बचाये। इसके साथ ही जमीनी स्तर पर काम करते हुये सरकार को चाहिये कि वह सबसे पहले प्रदेष भर में खाली पड़े चिकित्सकों के पदों को एक निष्चित समय सीमा में भरें। इसके साथ ही सरकार यह सुनिष्चित करे कि हर प्रसव विषेषज्ञ के मार्गनिर्देषन में हो तथा नवजात षिषु स्वास्थ्य देखभाल और उपचार इकाई सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र के स्तर पर स्थापित हो। साथ ही प्रदेष में स्वीकृत 150 सघन आकस्मिक मातृ एवं षिषु देखभाल केंद्र (सीमाॅक)केद्रों को चालू करे और इनमें भारतीय लोक स्वास्थ्य के मानके के मुताबिक स्वास्थ्य सुविधायें प्रदान की जायें। इन नीतियों को लागू किये बगैर प्रदेष में स्वास्थ्य सुविधाओं की पहॅंुच हर प्रदेषवासी तक पहॅुंचाने की बात करना ख्याली पुलाव पकाने के सिवाय और कुछ नहीं।
ललित दुबे

सविता का गुनहगार कौन?

एक तरफ प्रदेष के मुख्यमंत्री षिवराज सिंह चैहान प्रदेष के आदिवासियों के हितैषी और बेटियों के रक्षक होने का वादा कर रहे हैं । प्रदेष की सरकार मुख्यमंत्री के नेतृत्व में प्रदेष भर में बेटी बचाओ अभियान चला रही है। वही सरकार के चंद नुमाईदों की उदासीनता और लापरवाही के कारण सरकार और मुख्यमंत्री की मंषा को पलीता लग रहा है। मुख्यमंत्री प्रदेष भर में बेटी बचाओ अभियान के माध्यम से कन्या भू्रण हत्या के प्रति जागरूकता लाने की कवायद में लगे हैं। परन्तु महिला अपराधों में देष में पहले पायदान पर विराजमान प्रदेष में जिंदा बेटियों के प्रति अन्याय और अपराध कम होते नजर नहीं आ रहे हैं प्रदेष के आदिवासी बाहुल्य उमरिया जिले में 12 साल की आदिवासी बालिका से बलात्कार और मां बनने से जिले का प्रषासनिक अमला फिर एक बार सवालों के घेरे में आ गया हैं।
सविता बनी षिकार-उमरिया जिले की तामन्नारा पंचायत के ग्राम बिछिया की सविता बाई (परिवर्तित नाम) बैगा पिता प्रेमलाल बैगा गांव के ही शिक्षा गारंटी शाला में कक्षा-5वीं की छात्रा है। स्कूल के रिकार्ड में उसकी जन्मतिथि 10.7.1999 दर्ज है। अपना 12वां जन्मदिन मनाने के कुछ दिन बाद एक शाम स्कूल से वापस आकर वो घर के पास नदी में नहाने गई थी तभी 26 वर्षीय मुकेष बैगा जो उसका नजदीकी रिष्तेदार है ने उसे अपनी हवस का षिकार बना लिया और किसी को बताने पर जान से मारने की धमकी दी। सविता ने डर से अपनी जुबान बंद रखी पर कुछ ही महीनों में उसके बढ़े हुये पेट ने सारे गांव के सामने सच ला दिया। सविता के गर्भवती होने का पता चलते ही पिता प्रेमलाल ने आरोपी मुकेष के खिलाफ जाती पंचायत से लेकर पुलिस तक का दरवाजा खटखटाया। परन्तु इंसाफ की उम्मीद मंे घूमते प्रेमलाल और मासूम सविता को नाउम्मीदी हाथ लगी। इस बीच गत 23 अप्रैल 2012 को सविता ने जिला अस्पताल उमरिया में एक बच्ची को जन्म दिया है।
सवालोें के घेरे में प्रषासन- समाज के सवालों का सामना कर रही सविता के सामने कई सवाल खड़े हैं। 12 साल की नाबालिग सविता पर एक नवजात बच्ची की जिम्मेदारी आ गई है। कैसे कटेगा सविता और उसकी बच्ची का जीवन। सविता की पढ़ाई का क्या होगा? क्या सविता की शादी होगी और कैसे परवरिष करेगी वो अपनी बेटी की? सवाल सिर्फ सविता के सामने नहीं है सवालों के घेरे में प्रषासन भी है। क्या पुलिस ने सही समय पर उचित कार्यवाही की? क्या सामाजिक न्याय विभाग ने सविता की मदद की? क्या बाल कल्याण समिति ने सविता के साथ घटी घटना पर संज्ञान लिया। क्या महिला बाल विकास विभाग ने उसे उचित सलाह, मार्गदर्षन और सहयोग किया? क्या गर्भावस्था में उसे सरकार की स्वास्थ्य संबंधी योजनाओं का लाभ मिला है? क्या सविता को जननी षिषु सुरक्षा योजना, जननी एक्सप्रेस, मातृत्व सहायता योजना, गर्भावस्था में जांच तथा टीकाकरण हुआ है। क्या उसे आंगनबाड़ी से पोषक आहार प्राप्त हो रहा है। इन ढेर सारे सवालों के साथ एक महत्वपूर्ण सवाल शासकीय अस्पताल में सविता की प्रसूति होने पर अस्पताल ने अपने रिकार्ड में क्या दर्ज कियाहोगा। इन सारे सवालों के कई जवाब हो सकते है पर प्रषासन की कार्यप्रणाली पर उठते इन सवालों की अनदेखी करना संभव नहीं हैं।
बाल आयोग के समक्ष जायेगा मामला- बाल अधिकार एवं सरंक्षण पर काम कर ही संस्था मध्यप्रदेष लोक संघर्ष साझा मंच सविता के मामले को राज्य बाल आयोग के समक्ष ले जाने की तैयारी कर रहा है मंच के प्रदेष सह समन्वयक जावेद अनीस इसे बाल सरंक्षण एवं अधिकारों के हनन का मामले मानते है तथा वो कहते है कि प्रषासन की लापरवाही , उदासीनता और सविता के साथ हुये अन्याय को वह बाल आयोग के सामने रखेगें ताकि सविता को इंसाफ मिल सके।
ललित दुबे